श्री सप्तदेव मंदिर का इतिहास
संपादक की कलम से।
जिनके आर्शीवाद एवं प्रेरणा से कोरबा के हृदय स्थल पर अतिरमणीय एवं भव्य “श्री सप्तदेव मंदिर” का निर्माण किया गया है ऐसी महान विभूति है हमारे माता-पिता “श्रीमति सीता देवी मोदी एवं श्री किशनलाल जी मोदी” जो आज हमारे अंतःकरण में है जिन्होंने हमें एवं हमारे समस्त नगर वासियों को यह प्रेरणा दी कि मंदिर निर्माण से लोगों में चरित्र निर्माण के साथ साथ भक्ति, प्रेम, श्रद्धा एवं संस्कार का भी निर्माण होता है जो काल-कालांतर तक रहता है।
“मंदिर” जहाँ देवता निवास करते है एवं इस स्थान का वातावरण सदैव निर्मल, स्वच्छ एवं शुद्ध होता है। इस स्थान पर लोग अपने दुखों एवं कष्टों के निवारण के लिये आते है ऐसे पवित्र स्थान पर प्रवेश करते ही शीश स्वत: ही श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है, मन में पवित्र भाव का संचार होता है, वैमनस्थ की भावना समाप्त होती एवं सुख शांति का अनुभव होता है।
मंदिर के निर्माण से निश्चित ही इसके समक्ष से गुजरने वाला लगभग प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर को प्रणाम कर गुजरता है साथ ही मंदिर के निर्माण से इस क्षेत्र का वातावरण भी धार्मिक बनता है। माता पिता जब बच्चो के साथ मंदिर आते है तो बच्चो मे अपने धर्म के प्रति, ईश्वर के प्रति आस्था जागृत होती है एवं वे संस्कारित होते है एवं संस्कारित बच्चो से संस्कारित समाज का निर्माण होगा एवं संस्कारित समाज देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
आज माता-पिता के द्वारा लिये गये इस निर्णय का मै हृदय से नमन् करता हूँ कि उनके द्वारा लिये गये इस
निर्णय से इस क्षेत्र का ही नही अपितु इस नगर का नाम गौरान्वित हुआ है।
श्री सप्तदेव मंदिर की स्थापना का इतिहास
पूरे भारत में छ.ग. में स्थित कोरबा औधौगिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है क्योकि यहाँ विद्दुत का उत्पादन किया जाता है साथ ही कोरबा कोयले (काले हीरे) की नगरी के रूप में विख्यात है। वर्ष 1965-66 के प्रारम्भ में इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या लगभग 20-30 हजार होगी। पिछड़ा होने की तथा आदिवासी बाहुल्य होने की वजह से क्षेत्र का समग्र विकास नही हो पाया। इस क्षेत्र मे एक मात्र प्रसिद्ध मंदिर मॉ सर्वमंगला मंदिर है जो कि कोरबा के हसदेव नदी के किनारे स्थित है इस मंदिर का निर्माण कोरबा नगर की महारानी धनकुंवर द्धारा किया गया था जो आज भी स्थित है।
इस नगर में निवासरत् लोगों में से एक प्रमुख नाम श्री किशनलाल जी मोदी एवं श्रीमति सीतादेवी मोदी का है जो कि चाम्पा के प्रतिष्ठित व्यवसायियों में एक थे किन्तु कुछ समय के पश्चात श्री किशनलाल जी मोदी के चाम्पा से आकर कोरबा बस जाने से तथा इस नगर में अपना व्यापार प्रारम्भ कर उन्होंने कोरबा में एक प्रमुख व्यवसायी की छवि निर्मित की तथा उनके द्धारा सर्वप्रथम इस इलाके में राईस मिल की स्थापना की गयी शनैः शनैः व्यवसाय बढ़ता गया फलस्वरूप आपकी प्रतिष्ठा भी कोरबा में बढ़ती गयी एवं आप कोरबा के प्रतिष्ठित व्यापारियों में से एक रहे। प्रारंभ से ही आपकी प्रवृति धर्मिक थी अतः घर का वातावरण भी धार्मिक रहा।
चूंकि कोरबा एक अत्यन्त ही पिछड़ा इलाका था एवं पिछड़ा होने की वजह से इस क्षेत्र मे मनोरंजन के साधन का अभाव था | श्री किशनलाल मोदी जी की अभिलाषा थी कि इस क्षेत्र में चलचित्र घर का निर्माण किया जावे ताकि यहाँ की जनता अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी के अलावा मनोरंजन भी कर सके तथा अपना दिल बहला सकें। अपनी इस अभिलाषा से उन्होंने अपनी धर्म पत्नि श्रीमती सीता देवी मोदी को अवगत कराया एवं उनसे इस विषय पर अपनी राय मांगी एवं सीतादेवी मोदी जी ने बताया कि आपकी इस योजना से तो यहाँ कि जनता के लिये मनोरंजन का साधन तो उपलब्ध हो जायेगा किंतु इससे उनको किसी प्रकार की प्रेरणा नहीं मिलेगी बल्कि इस क्षेत्र मे मनोरंजन के नाम पर लड़ाई मारपीट अपशब्दो का प्रयोग बढ़ जायेगा एवं बच्चे कुसंस्कारित होंगे यदि चलचित्र घर का निर्माण के स्थान पर यहाँ भव्य मंदिर का निर्माण किया जाये तो चित ही इस मार्ग से गुजरने वाला व्यक्ति ईश्वर को प्रणाम कर गुजरेगा एवं मंदिर के निर्माण से वातावरण भी धार्मिक बनेगा तथा बच्चो के मंदिर आने से बच्चो में अपने ईश्वर के प्रति, धर्म के प्रति आस्था जागृत होगी तथा वे संस्कारित होगें। बच्चो के संस्कारित होने से संस्कारित समाज का निर्माण होगा। श्रीमती सीता देवी मोदी जी की बातो ने श्री किशनलाल मोदी को अत्यन्त प्रभावित किया एवं उन्होंने चलचित्र घर के स्थान पर मंदिर निर्माण की योजना बनाई एवं इस पर कार्य करना प्रारंभ किया।
कोरबा के हृदय स्थल मेनरोड पर मंदिर की नींव श्रीमती सीता देवी जी की उपस्थित मे रखी गयी एवं निर्माण कार्य प्ररंम्भ हुआ किंतु निर्माण कार्य के मध्य ही श्री किशनलाल जी मोदी एवं श्रीमती सीतादेवी मोदी का निधन हो गया एवं उनके निधन के पश्चात इस कार्य का दायित्व उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री अशोक मोदी जी ने अपने माता पिता के आशीर्वाद एवं अपनी भाई बहनो तथा मामा-मामियों के सहयोग से प्रारंभ किया एवं इसे पूर्ण कर अपने माता-पिता को सच्ची श्रद्धांजलि दी।
दिनांक 15.02.1994 को बसंत पंचमी के दिन पूर्ण विधि विधान के साथ इस मंदिर में देवी-देवताओं को प्रतिष्ठत किया गया एवं सप्त देव श्री राम-जानकी, श्री राधा-कृष्ण, श्री शंकर-पार्वती, श्री लक्ष्मी-नारायण श्री हनुमान जी, माँ दुर्गा देवी, मॉ श्री राणीसती देवी को विराजित कर इस मंदिर को ” श्री सप्तदेव मंदिर ” का नाम दिया गया।
इस मंदिर में देवी देवताओं के प्रतिष्ठित किये जाने के पूर्व देवी देवताओ को नगर भ्रमण कराया गया इस अवसर पर दमोहधारा के परमपूज्य तपस्वी बाबा श्री जगन्नाथ जी महाराज के श्री कर कमलो से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गयी।
श्री सप्तदेव मंदिर के निर्माण एवं मंदिर में देवी देवताओं के प्राण प्रतिष्ठा 15.02.1994 के पश्चात वर्ष भर के कार्यक्रम को धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाने के लिये, मंदिर के रखरखाव एवं पूजन के सामग्री के साथ साथ मंदिर के कार्यों का समस्त प्रबंधन का कार्य श्री सप्तदेव मंदिर परिवार ने ली।